NCERT Solutions for Class 11 Economics II Chapter 7 रोजगार-संवृद्धि, अनौपचारीकरण एवं अन्य मुद्दे

प्रश्न अभ्यास
(पाठ्यपुस्तक से)

प्र.1. श्रमिक किसे कहते हैं?
उत्तर : सकल घरेलू उत्पाद में योगदान देने वाले क्रियाकलापों को आर्थिक क्रियाकलाप कहा जाता है। आर्थिक क्रियाओं में संलग्न सभी व्यक्ति श्रमिक कहलाते हैं, चाहे वे उच्च या निम्न किसी भी स्तर पर कार्य कर रहे हैं। बीमारी, चोट, शारीरिक विकलांगता, खराब मौसम, त्योहार या सामाजिक-धार्मिक उत्सवों के कारण अस्थायी रूप से काम पर न आने वाले भी श्रमिकों में शामिल हैं। इन कार्यों में लगे मुख्य श्रमिकों की सहायता करने वालों को भी हम श्रमिक ही मानते हैं।

प्र.2, श्रमिक-जनसंख्या अनुपात की परिभाषा दें।
उत्तर : यदि हम भारत में कार्य कर रहे सभी श्रमिकों की संख्या को देश की जनसंख्या से भाग कर उसे 100 से गुणा कर दें तो हमें श्रमिक-जनसंख्या अनुपात प्राप्त हो जाएगा।

प्र.3. क्या ये भी श्रमिक हैं एक भिखारी चोर, एक तस्कर, एक जुआरी? क्यों?
उत्तर : उपयुक्त में से कोई भी श्रमिक नहीं है क्योंकि किसी का भी अर्थव्यवस्था के वास्तविक उत्पादन में कोई योगदान नहीं है। वे धन कमा नहीं रहे बल्कि धन प्राप्त कर रहे हैं। धन कमाना उसे कहा जाता है जब धन प्राप्ति के बदले में वस्तुओं या सेवाओं का उत्पादन किया जाए।

प्र.4, इस समूह में कौन असंगत प्रतीत होता है?
(क) नाई की दुकान का मालिक
(ख) एक मोची
(ग) मदर डेयरी का कोषपाल
(घ) ट्यूशन पढ़ाने वाला शिक्षक
(ङ) परिवहन कंपनी संचालक
(च) निर्माण मज़दूर।

उत्तर : मदर डेयरी का कोषपाल असंगत प्रतीत होता है क्योंकि केवल वह औपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है (मदर डेयरी एक बड़े पैमाने का उपक्रम है जिसमें 10 से अधिक लोग कार्यरत हैं।) शेष सभी अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हैं।

प्र.5. नये उभरते रोजगार मुख्यत ::::: क्षेत्रक में ही मिल रहे हैं। (सेवा/विनिर्माण)
उत्तर : सेवा।

प्र.6. चार व्यक्तियों को मज़दूरी पर काम देने वाले प्रतिष्ठान को ::::::” क्षेत्रक कहा जाता है। (औपचारिक/अनौपचारिक)
उत्तर : अनौपचारिक |

प्र.7. राज स्कूल जाता है। पर जब वह स्कूल में नहीं होता, तो प्रायः अपने खेत में काम करता दिखाई देता है। क्या आप उसे श्रमिक मानेंगे? क्यों?
उत्तर : हाँ, हम राज को श्रमिक मानेंगे क्योंकि वे सभी जो सकल राष्ट्रीय उत्पाद में योगदान देते हैं, उन्हें श्रमिक कहा जाता है, तब भी जब वे उन कार्यकलापों में संलग्न मुख्य श्रमिकों की सहायता करते हैं।

प्र.8. शहरी महिलाओं की अपेक्षा अधिक ग्रामीण महिलाएँ काम करती दिखाई देती हैं। क्यों?
उत्तर : शहरी महिलाओं की तुलना में अधिक ग्रामीण महिलाएँ काम करती दिखाई देती हैं क्योंकि

(क) ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक गरीबी- ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता स्त्रियों को श्रमबल में शामिल होने के लिए मजबूर करती हैं अन्यथा वे अपने परिवार की आधारभूत आवश्यकताएँ जुटाने में भी सक्षम नहीं हो पाते।

(ख) ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू कार्यों की उपलब्धता- ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत-सी घरेलू नौकरियाँ जैसे-खेतीबाड़ी, पशुपालन आदि उपलब्ध हैं। अत: घर से बाहर जाने और उससे उत्पन्न सुरक्षा मुद्दों का प्रश्न ही नहीं उठता।

(ग) शहरी क्षेत्रों में अधिक स्तर चेतना- शहरों में पुरुष उच्च आय कमा रहे हैं और उनमें स्तर के प्रति अधिक चेतना है। जिसमें वे स्त्रियों के आय अर्जन के लिए कार्य करने को बुरा मानते हैं।

(घ) शहरी क्षेत्रों में अधिक अपराधदर- शहरी क्षेत्र के लोगों को स्त्रियों का काम करना असुरक्षित लगता है क्योंकि स्त्री के विरुद्ध अपराध दर बहुत उच्च है।

प्र.9. मीना एक गृहिणी है। घर के कामों के साथ-साथ वह अपने पति की कपड़े की दुकान के काम में भी हाथ बँटाती है। क्या उसे एक श्रमिक माना जा सकता है? क्यों?
उत्तर : हाँ, वह एक श्रमिक है क्योंकि वे सभी जो सकल राष्ट्रीय उत्पाद में योगदान देते हैं, उन्हें श्रमिक कहा जाता है। वे भी श्रमिक ही कहलाते हैं जो मुख्य श्रमिकों को आर्थिक क्रियाओं में मदद करते हैं। यह महत्त्वपूर्ण नहीं है कि वेतन का भुगतान किया गया या नहीं बल्कि महत्त्वपूर्ण यह है कि सकल राष्ट्रीय उत्पाद में उनका योगदान है या नहीं।

प्र.10. यहाँ किसे असंगत माना जाएगाः
(क) किसी अन्य के अधीन रिक्शा चलाने वाला,
(ख) राजमिस्त्री
(ग) किसी मेकेनिक की दुकान पर काम करने वाला श्रमिक
(घ) जूते पालिश करने वाला लड़का।

उत्तर : (घ) जूते पालिश करने वाला लड़का क्योंकि वह स्वनियोजित है। अन्य सभी मजदूरी श्रमिक हैं। वे किसी ओर के अधीन निश्चित वेतन पर कार्यरत हैं।

प्र.11. निम्न सारणी में 1972-73 में भारत के श्रमबल का वितरण दिखाया गया है। इसे ध्यान से पढ़कर श्रमबल के वितरण के स्वरूप के कारण बताइए। ध्यान रहे कि ये आँकड़े 30 वर्ष से भी अधिक पुराने हैं।

उत्तर : दरअसल, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रहने वाली कुल जनसंख्या में अंतराल है। इसलिए पूर्ण आँकड़ों पर कुछ भी कहना गलत होगा। बेहतर होगा यदि हम इसे प्रतिशत में तुलना करें। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि:

(क) 1972-73 में भारत की कुल श्रमशक्ति 19.5 करोड़ थी जिसमें से 12.5 करोड़ अर्थात् 83% ग्रामीण क्षेत्रों में रह रही थी। दूसरी ओर शहरी क्षेत्रों में कर्मचारियों की संख्या केवल 17% थी। ऐसा इसीलिए है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों के लोग प्राथमिक गतिविधियों में नौकरी ढूंढते हैं जो मुख्यतः श्रम गहन तकनीकों का प्रयोग करती हैं जबकि शहरी क्षेत्रों के लोग औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्र में नौकरी ढूंढते हैं जो पूँजी गहन होती है।

(ख) यह भी तालिका से स्पष्ट है कि पुरुषों की तुलना में महिलाएँ अधिक कार्यरत हैं। ऐसा लिंग आधारित सामाजिक श्रम विभाजन के कारण है। ऐसा माना जाता है कि पुरुष का काम आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना है जबकि महिलाओं का काम घरेलू कामकाज करना है। बहुत से घरेलू काम जो स्त्रियाँ करती हैं श्रम/आर्थिक कार्य में नहीं आते। कुशलता की आवश्यकता भी इसका एक कारण है।

(ग) अन्य तथ्य यह सामने आ रहा है कि ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक महिलाएँ कार्यरत हैं। इसका कारण यह कि ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता अधिक है जो स्त्रियों को कार्य करने पर मजबूर करती है। ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू कार्य जैसे-खेतीबाड़ी, पशुपालन आदि उपलब्ध हैं। शहरों में लोग अपने सामाजिक स्तर के प्रति अधिक सचेत हैं, उन्हें स्त्रियों का काम करना बेइज्जती जैसा लगता है। शहरों में स्त्रियों के लिए कार्यस्थल असुरक्षित भी हैं।

प्र.12. इस सारणी में 1999-2000 में भारत की जनसंख्या और श्रमिक जनानुपात दिखाया गया है। क्या आप भारत के (शहरी और सकल) श्रमबल का अनुमान लगा सकते हैं?

उत्तर :



प्र.13. शहरी क्षेत्रों में नियमित वेतनभोगी कर्मचारी ग्रामीण क्षेत्र से अधिक क्यों होते हैं?
उत्तर : शहरी क्षेत्रों में नियमित वेतनभोगी कर्मचारी ग्रामीण क्षेत्र से निम्नलिखित कारणों से अधिक होते हैं
(क) सेवा क्षेत्र का प्रभुत्व-शहरी क्षेत्रों में सेवा क्षेत्र का प्रभुत्व है और सेवा क्षेत्र में नियमित वेतन श्रमिक अधिक हैं।
(ख) शहरी क्षेत्रों में शिक्षा का उच्च स्तर-नियमित वेतन नौकरियों के लिए उच्च शिक्षा स्तर की आवश्यकता होती है जो शहरी क्षेत्रों में अधिक होता है।
(ग) शहरी क्षेत्रों में कार्यस्थल के प्रति प्रतिबद्धता का उच्च स्तर-शहरी क्षेत्रों के लोग अपने कार्य के प्रति अधिक प्रतिबद्ध होते हैं। वे अपनी नौकरी को अधिक महत्त्व देते हैं तथा लंबी छुट्टियों पर नहीं जाते जबकि ग्रामीण लोगों की पहली प्राथमिकता उनके सामाजिक दायित्व होते हैं।

प्र.14, नियमित वेतनभोगी कर्मचारियों में महिलाएँ कम क्यों हैं?

उत्तर : नियमित वेतनभोगी में महिलाएँ कम पाई जाती हैं। इसके मुख्य कारण इस प्रकार हैं:
  • पुरुषों में शैक्षिक योग्यता का उच्च स्तर-नियमित वेतन नौकरियों के लिए उच्च शिक्षा स्तर की आवश्यकता होती है। जो पुरुषों में अधिक पाई जाती है।
  • पुरुषों में कार्य जीवन के प्रति अधिक प्रतिबद्धता–पुरुषों में कार्य जीवन के लिए प्रतिबद्धता का स्तर अधिक होता है। स्त्रियों की दोहरी जिम्मेदारी हैं।
  • सामाजिक पूर्वाग्रह-सामाजिक पूर्वाग्रह भी इसमें अपनी भूमिका निभा रहे हैं। यह माना जाता है कि कई नौकरियाँ स्त्रियाँ नहीं कर सकती तथा पुरुष कर्मचारी उन्हें एक उच्चाधिकारी के रूप में स्वीकार नहीं करते।
  • महिलाओं के कैरियर में ठहराव-विवाह के समय स्त्रियों को अपना घर बदलना पड़ता है। संतान के जन्म के समय भी उन्हें एक समयाविधि के लिए नौकरी से छुट्टी लेनी पड़ती है। बहुत-सी महिलाएँ संतान के लालन-पालन के लिए श्रम बाज़ार से बाहर चली जाती हैं।

प्र.15. भारत में श्रमबल के क्षेत्रकवार वितरण की हाल की प्रवृत्तियों का विश्लेषण करें।
उत्तर : नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, हम निम्नलिखित निष्कर्ष प्राप्त कर सकते हैं
  • प्रत्येक 100 में से 40 व्यक्ति कार्यशील हैं।
  • इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक 4 व्यक्ति 10 व्यक्तियों के लिए कमा रहे हैं। माना औसतन रूप से 1 व्यक्ति 2.5 व्यक्ति का लालन-पालन कर रहा है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में 76.6% लोग प्राथमिक क्षेत्रक में, 10.8% द्वितीयक क्षेत्रक तथा 12.5% सेवा क्षेत्रक में कार्यरत हैं।
  • शहरी क्षेत्रों में 9.6% लोग प्राथमिक क्षेत्रक 31.3 % द्वितीयक क्षेत्रक तथा 59.1% सेवा क्षेत्रक में संलग्न हैं।
  • महिलाएँ 75.1% प्राथमिक क्षेत्रक, 11.8% द्वितीयक क्षेत्रक तथा 13.1% सेवा क्षेत्र में संलग्न हैं जबकि पुरुष 53.8% प्राथमिक क्षेत्रक, 17.6% द्वितीयक क्षेत्रक तथा 28.6% सेवा क्षेत्रक में संलग्न हैं।



प्र.16. 1970 से अब तक विभिन्न उद्योगों में श्रमबल के वितरण में शायद ही कोई परिवर्तन आया है। टिप्पणी करें।
उत्तर : 1970 के बाद से विभिन्न उद्योगों में श्रमबल के वितरण में शायद ही कोई परिवर्तन आया है। यह नीचे दी गई तालिका से स्पष्ट है

प्र.17. क्या आपको लगता है पिछले 50 वर्षों में भारत में राज़गार के सृजन में भी सकल घरेलू उत्पाद के अनुरूप वृद्धि हुई है? कैसे?
उत्तर : नहीं, मुझे ऐसा नहीं लगता कि पिछले 50 वर्षों में भारत में रोजगार के सृजन में भी सकल घरेलू उत्पाद के अनुरूप वृद्धि हुई है। हम सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर को रोजगार सृजन की दर से तुलना करके यह सिद्ध कर सकते हैं। स्वतंत्रता के समय से सकल घरेलू उत्पाद औसतन 4.5% प्रतिवर्ष की दर से बढ़ा है। जबकि रोज़गार का सृजन केवल 1.5% प्रति वर्ष हुआ है। इससे यह सिद्ध होता है कि भारत में रोज़गारहीन संवृद्धि हुई है।

प्र.18. क्या औपचारिक क्षेत्रक में रोजगार का सृजन आवश्यक है? अनौपचारिक में नहीं? कारण बताइए।
उत्तर : हाँ, यह आवश्यक है कि हम औपचारिक क्षेत्रक में रोजगार सृजन करें क्योंकि

1. औपचारिक क्षेत्रक कर्मचारियों के अधिकार सुनिश्चित करता है।
2. यह काम की सुरक्षा और रोज़गार की नियमितता सुनिश्चित करता है।
3. यह एक बेहतर गुणवत्ता का कार्य जीवन सुनिश्चित करता है।
4. औपचारिक क्षेत्रक पर सरकार नियंत्रण रख सकती है।
5. यह अर्थव्यवस्था में अनुशासन और नियम लाता है।

प्र.19. विक्टर को दिन में केवल दो घंटे काम मिल पाता है। बाकी सारे समय वह काम की तलाश में रहता है। क्या वह बेरोजगार है? क्यों? विक्टर जैसे लोग क्या काम करते होंगे?
उत्तर : हाँ, वर्तमान दैनिक स्थिति (CDS) के अनुसार वह कार्यरत है क्योंकि वर्तमान दैनिक स्थिति (Current Daily Status) के अनुसार, कोई व्यक्ति जो आधे दिन में 1 घंटे का काम प्राप्त करने में सक्षम है वह नियोजित है। विक्टर जैसे लोग रिक्शा चालक, मोची, बिजली, पलंबर, मेसन या छोटे-मोटे रिपेयर जैसे काम करते हैं।

प्र.20. क्या आप गाँव में रह रहे हैं? यदि आपको ग्राम-पंचायत को सलाह देने के लिए कहा जाए तो आप गाँव की उन्नति के लिए किस प्रकार के क्रियाकलाप का सुझाव देंगे, जिससे रोजगार सृजन भी हो।
उत्तर : मैं निम्नलिखित क्रियाकलापों का सुझाव दूंगा/देंगी
(क) नहरों और नलकूपों का निर्माण ताकि सिंचाई सुविधाओं में सुधार हो
(ख) स्कूल और अस्पतालों का निर्माण
(ग) सड़कों, भंडारण गृहों आदि का निर्माण
(घ) कृषि आधारित उद्योगों को विकसित करना
(ङ) छोटे पैमाने के उद्योग जैसे-टोकरी, बुनाई, अचार बनाना, कढ़ाई आदि विकसित करना।

प्र.21. अनियत दिहाड़ी मज़दूर कौन होते हैं?
उत्तर : ऐसे कार्यकर्ता जिन्हें अनुबंध या दैनिक आधार पर भुगतान किया जाता है तथा जिनके काम की कोई नियमितता नहीं है, उन्हें अनियत दिहाड़ी मज़दूर कहा जाता है। उदाहरण-निर्माण मजदूर।

प्र.22. आपको यह कैसे पता चलेगा कि कोई व्यक्ति अनौपचारिक क्षेत्रक में काम कर रहा है?
उत्तर : यह जानने के लिए कि कोई व्यक्ति अनौपचारिक क्षेत्रक में काम कर रहा है, हमें निम्नलिखित तथ्यों पर ध्यान देना होगा–

(क) जिस प्रतिष्ठान में व्यक्ति कार्यरत है वहाँ कुल कर्मचारियों की संख्या-यदि कुल कर्मचारियों की संख्या 10 या उससे अधिक है तो व्यक्ति औपचारिक क्षेत्रक में नियोजित है।

(ख) लिखित अनुबंध-यदि एक व्यक्ति को अपने नियोक्ता के साथ लिखित अनुबंध है तो वह औपचारिक क्षेत्रक में कार्यरत है अन्यथा वह अनौपचारिक क्षेत्रक में कार्यरत है।

(ग) उसे अतिरिक्त लाभ मिल रहे हैं या नहीं-यदि एक व्यक्ति को तनढव्वाह के अतिरिक्त अन्य लाभ पेंशन, बोनस, पी.एफ., सवेतन छुट्टी, भविष्य निधि, मातृत्व लाभ आदि मिल रहे हैं तो वह औपचारिक क्षेत्रक में कार्यरत है।

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